वांछित मन्त्र चुनें

नमो॑ धृ॒ष्णवे॑ च प्रमृ॒शाय॑ च॒ नमो॑ निष॒ङ्गिणे॑ चेषुधि॒मते॑ च॒ नम॑स्ती॒क्ष्णेष॑वे चायु॒धिने॑ च॒ नमः॑ स्वायु॒धाय॑ च सु॒धन्व॑ने च ॥३६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। धृ॒ष्णवे॑। च॒। प्र॒मृ॒शायेति॑ प्रऽमृ॒शाय॑। च॒। नमः॑। नि॒ष॒ङ्गिणे॑। च॒। इ॒षु॒धि॒मत॒ इती॑षुधि॒ऽमते॑। च॒। नमः॑। ती॒क्ष्णेष॑व॒ इति॑ ती॒क्ष्णऽइ॑षवे। च॒। आ॒यु॒धिने॑। च॒। नमः॑। स्वा॒यु॒धायेति॑ सुऽआ॒यु॒धाय॑। च॒। सु॒धन्व॑न॒ इति॑ सुऽधन्व॑ने। च॒ ॥३६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:36


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो राजा और प्रजा के अधिकारी लोग (धृष्णवे) दृढ़ (च) और (प्रमृशाय) उत्तम विचारशील (च) तथा कोमल स्वभाववाले पुरुष को (नमः) अन्न देवें (निषङ्गिणे) बहुत शस्त्रोंवाले (च) और (इषुधिमते) प्रशंसित शस्त्र, अस्त्र और कोशवाले का (च) भी (नमः) सत्कार और (तीक्ष्णेषवे) तीक्ष्ण शस्त्र-अस्त्रों से युक्त (च) और (आयुधिने) अच्छे प्रकार तोप आदि से लड़नेवाले वीरों से युक्त अध्यक्ष पुरुष का (च) भी (नमः) सत्कार करें (स्वायुधाय) सुन्दर आयुधोंवाले (च) और (सुधन्वने) अच्छे धनुषों से युक्त (च) तथा उनके रक्षकों को (नमः) अन्न देवें, वे सदा विजय को प्राप्त होवें ॥३६ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि जो कुछ कर्म करें सो अच्छे प्रकार विचार और दृढ़ उत्साह से करें, क्योंकि शरीर और आत्मा के बल के बिना शस्त्रों को चलाना और शत्रुओं का जीतना कभी नहीं कर सकते। इसलिये निरन्तर सेना की उन्नति करें ॥३६ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नादिदानम् (धृष्णवे) यो धृष्णोति दृढो निर्भयो भवति तस्मै (च) (प्रमृशाय) प्रकृष्टविचारशीलाय (च) मृदुस्वभावजनाय (नमः) सत्करणम् (निषङ्गिणे) बहवो निषङ्गाः शस्त्रसमूहा विद्यन्ते यस्य तस्मै (च) (इषुधिमते) प्रशस्तशस्त्रास्त्रकोशाय (च) (नमः) सत्करणम् (तीक्ष्णेषवे) तीक्ष्णास्तीव्रा इषवोऽस्त्रशस्त्राणि यस्य तस्मै (च) (आयुधिने) ये शतघ्न्यादिभिः समन्ताद् युध्यन्ते ते प्रशस्ता विद्यन्ते यस्य तस्मै (च) (नमः) अन्नदानम् (स्वायुधाय) शोभनानि आयुधानि यस्य तस्मै (च) (सुधन्वने) शोभनानि धन्वानि धनूंषि यस्य तस्मै (च) तेषां रक्षकाय ॥३६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये राजप्रजाजनाध्यक्षा धृष्णवे च प्रमृशाय च नमो निषङ्गिणे चेषुधिमते च नमस्तीक्ष्णेषवे चायुधिने च नमः स्वायुधाय च सुधन्वने च नमः प्रदद्युः कुर्युश्च ते सदा विजयिनो भवन्तु ॥३६ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यत्किंचित्कर्म कार्य्यं तत्सुविचारेण दृढोत्साहेनेति, नहि शरीरत्मबलमन्तरेण शस्त्रप्रहरणं शत्रुविजयश्च कर्त्तुं शक्यते, तस्मात् सततं सेना वर्द्धनीया ॥३६ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी दृढ उत्साहाने चांगल्या प्रकारे विचार करून कर्म करावे. कारण शरीर व आत्मा यांच्या शक्तीखेरीज शस्त्रे चालविणे व शत्रूंना जिंकणे कधी शक्य होत नाही. त्यासाठी सदैव सैन्याला प्रोत्साहित करावे.